________________
( २५ ) हैं। ये सब वीर-रत्न भगवान महावीर के अपूर्व प्रकाश को प्रदीप्त कर रहे थे। अपनी शूर वीरता, त्याग-धर्म और देशप्रेम के कारण इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा हुश्रा अमर है। हाँ, अभागे जैनी उनके नाम और काम को भूल कर कायर, ढोंगी और स्वार्थी बने रहें, तो यह कम आश्चर्य नहीं है।
नन्द साम्राज्य के जैन वीर अजात शत्रु के बाद शिशुनागवंश में ऐसे पराक्रमी राजा न रहे जो मगध साम्राज्य को अपने अधिकार में सुरक्षित रखते । परिणाम इसका यह हुआ कि नन्द वंश के राजा मगध के सिंहासन पर अधिकार कर बैठे। इस वंश के अधिकांश राजा जैनधर्मानुयायी थे; ऐसा विद्वान अनुमान करते हैं। किन्तु सम्राट नन्दिवर्द्धन के विषय में यह निश्चित है कि वह एक जैन राजा थे ! महानन्द यद्यपि अपनी धार्मिक कट्टरता के लिये प्रसिद्ध था; परन्तु एक शूद्रा कन्या से विवाह करने पर वह ब्राह्मणों की दृष्टि से गिर गया था। फलतः वह और उस के पुत्र महापद्म का जैन होना सम्भव है। प्रस्तु;
* अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृ० ४५-४६
+इनल आफ दी बिहार एण्ड ओड़ीसा रिसर्च सोसाइटी भा.१३ पृ. २४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com