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जैन- मुनि ( क्षपणक) का आदर करते थे । सम्राट् चन्द्रगुप्त विरुद्ध यह दोनों वीर बड़ी बहादुरी से लड़े थे । किन्तु इसमें वह विजयी न हुये, बल्कि नन्दराज तो मारे गये और राक्षस को चन्द्रगुप्त ने अपने पक्ष में कर लिया ।
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मौर्य साम्राज्य के जैन शूर ।
नन्दों के बाद मौर्य राजागण मगध साम्राज्य के अधिकारी हुए । यह सूर्यवंशी क्षत्री थे और इसके पहले इनका गणराज्य "मोरिय तन्त्र" के रूप में हिमालय की तराई में मौजूद था । उस समय मौराख्य अथवा मोरिय देश में भगवान महावीर का विहार और धर्मोपदेश कई बार हुआ था । उसी का परिणाम था कि उनमें से अनेक वीर पुरुष भगवान महावीर की शरण आये थे । भगवान महावीर के दो खास शिष्य गणधर मौर्य ही थे ।
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इस मौर्यवंश के राजकुमार "चन्द्रगुप्त" ही मगध साम्राज्य के अधिपति हुए थे और यह सम्राट् अपने नाम और काम के लिए न केवल भारतीय इतिहास में अपितु संसार के प्राचीन इतिहास में अद्वितीय हैं । चन्द्रगुप्त ने अपने बाहुबल से पेशावर से कलकत्ता और सुदूर दक्षिण की सीमा तक अपना राज्य फैला लिया था । इन राज्य की अन्य विशेष बातों
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