Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 37
________________ भगवान महावीर के समय में न केवल वजियन राष्ट्रसङ्घ था, बल्कि मल्ल, शाक्य, कोल्यि, मोरीय इत्यादि कई एक गणराज्य थे। किन्तु इन सब में लिच्छिवि क्षत्रियों की प्रधानता का वृजिराष्ट्रसङ्घ मुख्य था। इसी के सभापति राजा चेटक थे। इसकी सुव्यवस्था का श्रेय राजा चेटक को था और इसमें ही उनका महत्व गर्भित है। सम्राट् “श्रेणिक” के व्यक्तित्व की महत्ता मगध साम्राज्य की नींव को दृढ़ बना देने में है। उन्होंने साम्राज्य की राजधानी राजगृह को फिर से निर्माण कराया था। परिणाम इस सब का यह हुआ कि कुछ वर्षों के भीतर ही मगधराज्य भारत का मुकुट बन गया। सिकन्दर महान् ने जब सन् ३०२ई० पूर्व में भारत पर प्राकमण किया तब उसे विदित हुश्रा कि मगधराज ही महा प्रबल भारतीय राजा है। यह श्रेणिक की दूरदर्शिता का ही परिणाम था । किन्तु श्रेणिक का महत्व तो उनके उस वीरतामय कार्य में गर्भित है, जिसके बल हिन्दुस्तान विदेशियों के जुए तले आने से बाल-बाल बच गया। वात यह थी कि उनके राज्यकाल में ही ईरान के बादशाह ने भारत पर आक्रमण किया था, किन्तु श्रेणिक ने उसे मार भगाया और उसके देश में भारतीयता की धाक जमा दी। श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार के प्रयल से पारस्य में जैनधर्म. का प्रचार हो गया । यहाँ तक कि एक ईरानी राजकुमार तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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