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( १८ ) स्थापना कर ली थी। इसका नाम उन्होंने रक्खा था-"श्रीवजियन या वृजिगण राज्य ।” और वे इसमें अपने प्रतिनिधि चुन कर भेजते थे। वे सब 'राजा' कहलाते थे। इस राष्ट्रसङ्घ के सभापति (President) राजा चेटक थे और वे लिच्छिवि वंशीय क्षत्रियों के नायक थे।
भगवान महावीर की माता त्रिशलादेवी राजा चेटक की विदुषी कन्या थीं। अतः भगवान महावीर और राष्ट्रपति चेटक का घनिष्ठ सम्बन्ध था । गणराज्य के स्वाधीन वातावरण में शिक्षित-दीक्षित हुए यह नरपुंगव श्रेष्ठ वीर थे। राजा चेटक अपने शौर्य के लिए प्रख्यात् थे। एक बार उस समय के प्रख्यात् साम्राज्य मगध से लिच्छिवियों की युद्ध ठन गई । फलतः वजियन राष्ट्रसङ्घ में सम्मिलित सब ही क्षत्री अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर रणक्षेत्र में आ डटे। सेनपति बनाये गये श्रावकोत्तम वीर सिंहभद्र अथवा सीह यह संभवतः राजा चेटक के पुत्र थे और बाँके वीर थे। उपरोक्त सङ्घ मे भगवान महावीर के वंशज शात क्षत्री भी सम्मिलित थे। उन्होंने भी इस युद्ध में खास भाग लिया। राजकुमारमहावीर भी इस कार्य में पीछे न रहे होंगे; यद्यपि उनका अलग उल्लेख किसी ग्रन्थ में नहीं है। तो भी यह स्पष्ट है कि लिच्छिवि, शात, कश्यप आदि क्षत्रिय कुलों के वीर इस युद्ध में शामिल थे। बड़ा घमासान युद्ध हुआ और विजयश्री राजा
चेटक के पक्ष में रही। किन्तु मगध सम्राट् जल्दी मानने वाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com