Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 34
________________ ( १७ ) लिए घर-बार और कपड़े-लत्ते छोड़ कर अरण्यवासी हो गये। फलतः आत्म-स्वातन्त्र्य उन्हें मिला। वह सर्वज्ञ हो गये और गिरनार पर्वत से उन्होंने मुक्तिलाभ किया । कहिये उनकी वीरता कैसी अनुपम थी ? वह केवल भौतिक, बल्कि आत्मिकक्षेत्र में भी लासानी हैं। जैन वीरों की यही श्रेष्ठता है । वह न केवल रण-क्षेत्र में ही शौर्य प्रकट करके शान्त हुए, प्रत्युत् अध्यात्मिक क्षेत्र में महान् शूर वीर बने। इसीलिए वह जगत्-चन्द्य हैं। - ० (५) भगवान महावीर और उनके समय के जैन वीर। ( राष्ट्रपति चेटक और सम्राट् श्रेणिक प्रभृति जैन वीर ) वैशाली, क्षत्रियग्राम, कुण्डग्राम, कोजग आदि छोटे-बड़े नगर और सन्निवेश वहाँ आस पास बसे हुए थे। इनमें सूर्यवशी क्षत्रियों की बसती थी। लिच्छवि नामक सूर्यवंशी क्षत्रियों की इनमें प्रधानता थी और यह वैशाली में श्राबाद थे । कुण्डग्राम और कोलग अथवा कुलपुर में नाथ अथवा झातृवंशी क्षत्रियों की घनी आबादी थी। इनके अतिरिक्त इर्दगिर्द और भी बहुत से क्षत्रीकुल बिखरे हुए थे। इन सबने आपस में सङ्गठन कर के एक प्रजातन्त्रात्मक शासनतन्त्र की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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