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सत्रहवें श्रोर अठारहवें तीर्थङ्कर सार्वभोम चक्रवर्ती सम्राट थे । सालहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ का जन्म हस्तिनापुर में हुश्रा था। तब वहाँ पर काश्यपवंशी राजा विश्वसेन राज्याधिकारी थे । इनके ऐरादेवी नाम को रानी थी। उसी के गर्भ से शान्तनाथ भगवान का जन्म हुआ था । युवा होने पर पिता ने इनका राजतिलक कर दिया और तब राजा हो कर इन्होंने प्रदूषण्ड पृथ्वी पर अपनी विजय पताका फहराई थी । उपरान्त राज-पाट छोड़ कर श्रात्म - स्वातन्त्र्य पाने के लिए उन्होंने विषय - कषाय रूपी वैरियों को परास्त कर के मोक्ष-लक्ष्मी को
बरा रा ।
इन्हीं की तरह सत्रहवें तीर्थङ्कर कुंथुनाथ ने भी प्रबल अक्षौहिणी लेकर सार्वभौम दिग्विजय कर के चक्रवर्ती पद पाया था । यह भी हस्तिनापुर में कुरुवंशी राजा सूरसेन की पत्नी रानी कान्ता की कोख से जन्मे थे ।
अठारहवें तीर्थङ्कर अरहनाथ थे । इनका जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था । तब वहाँ पर सोमवंश के काश्यपगोत्री राजा सुदर्शन राज्य कर रहे थे । उनकी रानी मित्रसेना अरहनाथ जी की माता थीं । इन्होंने भी समस्त पृथ्वी पर अधिकार जमा कर चक्रवतीं पद पाया था । इनके समय से ही ब्राह्मण वानप्रस्थ साधुगण विवाह करने लगे थे । इस प्रथा का प्रवर्तक जमदग्नि नामक संन्यासी था । और जब अरहनाथ जी मुक्त हो गये, तब परशुराम ने क्षत्रियों को निःशेष करने
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