Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ शुद्धाशुद्धि पत्र। GM पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध Congueror Conqueror ३ २० के लोलुपी के लिये लोलुपी कल्यकाल कल्पकाल इसी के इसी की निवृत्ति निवृत्ति कि वीरोंके चरत्र कि इन वीरोंके चरित्र चकाधौध चकाचौंध श्राषधि हा औषधि हो laina Taina अब उन बतलाने बतलाये उभ्र उम्र यये गये विचार विहार सालहवें सोलहवें सेनपति सेनापति १६ ५ लगध मगध २१ २१ विचार विचर १३ लिया' शब्द के आगे निम्नशब्द बढ़ाने चाहिये"आखिर एक मुनिराज के संसर्ग में आकर वह जैनी हो गया और तब उदयन् ने उसे मुक्त कर दिया। वह जाकर" २४६ अजातशत्रु अजातशत्रु राजा २६ २२ अमरत्य । अमात्य २७ २१ इन राज्य इनके राज्य २४ ता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com 000 तो

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106