Book Title: Jain Viro ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Kamtaprasad Jain

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Page 29
________________ ( १२ ) तथापि देश में सेवा कार्य और शिल्प की उन्नति के लिए जिन्हें दक्ष पाया उन्हें 'सेवक वर्ग' में नियुक्त किया और उनको 'शूद्र' नाम से पुकारा । इस तरह प्रारम्भ में इस त्रिवर्ग से ही राष्ट्रीय कार्य चल निकला । राजाशा के बिना कोई वर्गभेद का उल्लङ्घन नहीं कर सकता था । हाँ, यदि कोई वैश्य क्षत्रियत्व के उपयुक्त पाया जाता, तो उसे सैनिकवर्ग में पहुँचने की पूर्ण स्वाधीनता थी । बस इस प्रकार देश में राष्ट्रीय नागरिकता को जन्म दे कर ऋषभदेव जी सुचारु रूप से शासन करने लगे । किन्तु इस समय तक लोगों को अपने इहलोक सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति से ही छुट्टी नहीं मिली थी; इसलिये उन्हें परलोक विषयक बातों की ओर ध्यान देने का अवसर ही नहीं मिला था और इसका कारण 'ब्राह्मण वर्ग' अभी अस्तित्व में नहीं आया था । उसका जन्म तो भरत महाराज ने तब किया जब भगवान ऋषभदेव सर्वश तीर्थङ्कर हो गये । उपरान्त जब ऋषभदेव जी ने राष्ट्र की समुचित राजव्यवस्था कर दी और लोगों को सभ्य एवं कर्मण्य जीवन बिताना सिखा दिया; तथापि स्वयं वे गृहस्थ रूप में सफल हो चुके; तब उन्हें परलोक की सुधि श्राई । विवेक उनके सम्मुख मूर्तिमान हो, श्रा खड़ा हुआ। इस बड़ी उम्र में अब उन्हें श्रात्म-ज्ञान प्राप्त करने की सुधि श्राई। उन्होंने मन्त्रिमण्डल को एकत्र किया । सब की सम्मति से ऋषभदेव जी के पुत्र भरत जी का राजतिलक कर दिया गया । श्रार्यावर्त के वही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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