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( २ ) साहित्य और प्रेस द्वारा प्रचार करके धर्म-प्रभावना करने का मूल्य ही नहीं मालूम है ! किन्तु सौभाग्य से अब हमारे उगते हुए समाज का ध्यान इस ओर गया है और वह अब इस टटोल में भी है कि हमारे पूर्वजों ने धर्म, देश र जाति के लिए कौन-कौन से कार्य किये ? इसी भावना का परिणाम है कि हमारे साहित्य में अब उन चमकते हुए वीर नर-रत्नों का प्रकाश प्रदीप्त हो चला है, जो अपनी सानी के अनूठे हैं । हमें विश्वास है, कि यह प्रकाश जमाने की उच्छ हलता की धज्जियां उड़ा देगा और जैन युवकों के हृदयों को पूर्वजों की गुण-गरिमा से चमका कर इतना प्रबल बना देगा कि फिर किसी को साहस ही न होगा कि वह जैनों और जैनधर्म को हेय भीरुता का आगार बता सके।
'जिन खोजा तिन पाइयां' यह बिल्कुल सच है; किन्तु विरले ही खोज-खसोट करके सत्य को पाने का प्रयास करते हैं। यही कारण है कि जैनधर्म के विषय में प्रमाणिक साहित्य सुलभ हो चलने पर भी लोग उसके विषय में सत्य को नहीं पा सके हैं। किन्तु अब उन्हें कान खोल कर सुन लेना चाहिये कि वह भारी गलती में हैं महा अन्धकार में पड़े हुए हैं।
आर्य लोक में जैनी और जैनधर्म ने धर्म, देश और लोक के लिए इतनी लाजवाब कुरबानियां की हैं कि उनको उंगलियों पर गिना देना बिल्कुल असम्भव है। इसका एक कारण है और वह यह कि जैनधर्म अपने प्रत्येक अनुयायी को वीर बनने
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