Book Title: Jain Viro ka Itihas Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Kamtaprasad Jain View full book textPage 4
________________ भूमिका महापुरुषों का इतिहास समाज का जीवनरस है। उनके चरित्र स्मरण से हृदय में पवित्रता और दृढता का संचार होता है तथा शरीर में तेज अंर स्फूर्ति उत्पन्न होती है। उससे हमें शान्ति के समय कार्यपटुता और विपत्ति के समय धैर्य व सतताभियोग की शिक्षा मिलती है। उच्च विचार अर सरल जीवन का जो पाठ हम सह व उपदेश सुनकर भी नहीं सीख पाते वह महापुरुषों की जीवनियों से अनायास ही हमारे हृदय पर अंकित हो जाता है। जिस समाज व व्यक्ति के सन्मुख कुछ ऐसे श्रादर्श उपस्थित नहीं हैं वह मृतक के समान ही है। जैनी प्रारम्भ से ही वीरोपासक रहे हैं । जो अपने शत्रों पर जितनी विजय प्राप्त कर सकता है उतना ही उसमें परमात्मत्व प्रकट हुआ समझा जाता है । जिसने अपने सम्पूर्ण शत्रों को जीत लिया वही जैनियों का परमात्मा है। यह कहना बड़ी भारी भूल है कि जैनधर्म में केवल प्रात्मा की ओर ही ध्यान दिया गया है और शरीर का कोई महत्व नहीं गिना गया । जैनमतानुसार शरीर और अ.त्मा की उन्नति में बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध है, यहां तक कि जब तक मनुष्य का शरीर सम्पूर्ण हीनताओं से रहित होकर वज्र के समान नहीं होजाता अर्थात् वज्र बृषभनाराच संहनन नहीं प्राप्त कर लेता तब तक वह मोक्षपद का अधिकारी नहीं हो सकता। इस सिद्धान्त के होते हुए इसमें आश्चर्य ही क्या है यदि जैन समाज के भीतर द नो आत्मिक वीरता और शारीरिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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