Book Title: Jain Viro ka Itihas Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Kamtaprasad Jain View full book textPage 3
________________ ( 3 ) अन्त में जैन वीरों के इस संक्षिप्त विवरण को उपस्थित करते हुए मुझे हर्ष है । वह इस लिये कि इन वीरवरों का महान् त्याग और कर्तव्यनिष्ठा समाज में नवजागृति की लहर उत्पन्न करने में और जैनों के नाम को लोक में चमकाने में सहायक होगा । यदि ऐसा हुआ तो मैं अपने प्रयत्न को सफल हुआ समभुंगा ! किन्तु इस सब-कुछ का श्रेय श्री जैन- मित्र मण्डल, दिल्ली के उत्साही कार्य कर्ताओं को है; जिनके निमित्त से यह पुस्तक प्रकाश में आ रही है । अतः मैं उनका और अपने प्रिय मित्र प्रो० हीरालाल जी एम. ए. का जिन्होंने उपयोगी भूमिका लिख देने का कष्ट उठाया है, आभारी हुए बिना नहीं रह सकता । इतिशम् ! वन्देवीरम् ! अलीगंज (एटा ) २८-३-११३० . विनीत कामताप्रसाद जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 106