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अन्त में जैन वीरों के इस संक्षिप्त विवरण को उपस्थित करते हुए मुझे हर्ष है । वह इस लिये कि इन वीरवरों का महान् त्याग और कर्तव्यनिष्ठा समाज में नवजागृति की लहर उत्पन्न करने में और जैनों के नाम को लोक में चमकाने में सहायक होगा । यदि ऐसा हुआ तो मैं अपने प्रयत्न को सफल हुआ समभुंगा ! किन्तु इस सब-कुछ का श्रेय श्री जैन- मित्र मण्डल, दिल्ली के उत्साही कार्य कर्ताओं को है; जिनके निमित्त से यह पुस्तक प्रकाश में आ रही है । अतः मैं उनका और अपने प्रिय मित्र प्रो० हीरालाल जी एम. ए. का जिन्होंने उपयोगी भूमिका लिख देने का कष्ट उठाया है, आभारी हुए बिना नहीं रह सकता । इतिशम् ! वन्देवीरम् !
अलीगंज (एटा )
२८-३-११३०
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विनीत
कामताप्रसाद जैन
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