Book Title: Jain Vidya 10 11
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 12
________________ 'मंगलस्वरूप हैं अतः उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापन करने हेतु भगवान् महावीर और गौतम गणधर के पश्चात् उनका नाम स्मरण उचित ही है । उनके 2000 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने एवं जैन धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार तथा संरक्षण हेतु नवीन उत्साह से सन्नद्ध होने हेतु सम्पूर्ण विश्व में द्विसहस्त्राब्दि महोत्सव बड़े उत्साह और उमंग से मनाया गया । प्रस्तुत प्रकाशन उसी सन्दर्भ में योगदान का एक छोटा सा प्रयत्न है । आशा है पाठकों को यह रुचिकर, आत्मोत्थान तथा चारित्र-निर्माण हेतु प्रेरणास्पद होगा । al यह अंक विभिन्न बहुश्रुत विद्वानों की लेखिनी से अनुस्यूत रचनाओं द्वारा संजोयासंवारा गया है । एतदर्थ हम उनके ऋणी हैं। भविष्य में भी हमें उनसे ऐसा ही सहयोग प्राप्त होता रहेगा, ऐसा हमारा विश्वास है । इस अंक के सम्पादन, प्रकाशन, मुद्रण में जिन-जिन का भी परामर्श / सहयोग रहा है वे सब धन्यवादार्ह हैं । कपूरचन्द पाटनी प्रबन्ध सम्पादक

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