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प्रथम : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व,
की व्याख्या में 'कवनीयं काव्यम्' व्युत्पत्ति की गयी है। इस प्रकार वर्णन करने वाले या जानने वाले को कवि तथा उसके कर्म या कृति को काव्य कहते है। यद्यपि 'कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूः' के द्वारा कवि का (अर्थ) प्रयोग सर्वज्ञ परमेश्वर के लिए हुआ है, ' तया तेने ब्रह्मदृवा च आदि कवये ' के अनुसार 'आदि कवि' शब्द का अर्थ ब्रह्मा के अर्थ में मिलता है। “ शुक्रदैत्यगुरु काव्य उश्ना भार्गवः कविः " आदि कोश के अनुसार 'कवि' शब्द दैत्यगुरु शुक्राचार्य अर्थ में और “विद्वान विब्चिदोषज्ञः पण्डितः कवि" पण्डित कवि अर्थ में उपलब्ध होता है तथापि आदि कवि वाल्मीकि, व्यास के लिए भी 'कवि' शब्द का प्रयोग मिलता है। इसी से महर्षि वाल्मीकि प्रणीत 'रामायण' की प्रत्येक सर्ग की पुष्पिका में 'ईष्यार्थे आदि काव्ये' सर्वत्र लिखा हुआ प्राप्त होता हैं । महर्षि व्यास कृत 'महाभारत' की गणना भी काव्य में की गई है। इन्होंने स्वयं इसका प्रतिपादन किया है- "कृतं मयेदं भगवन् काव्यं परम पूजितम्" तथा साहित्य दर्पणकार विश्वनाथ ने भी "अस्मिन्नार्षे पुनः सर्वाभन्त्याख्यान संज्ञका" पुनः इस कारिका की व्याख्या में “ अस्मिन् महाकाव्ये यथा महाभारतम् " कहते हुए महाभारत को स्पष्ट रूप में महाकाव्य स्वीकार किया है।
पाश्चात्य साहित्यकारों ने 'कवि' के सम्बन्ध में अधिक न लिखकर काव्य के सम्बन्ध में ही अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं तथापि कवि सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत उद्धृत है
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