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(२३) जपचापती देवी का भाषण हो चुका व श्रीमती विद्यावती देवी ने इस भाषण का अनुमोदन किया हनु मोदन क्या था वह एक प्रकार की पवित्र पुष्पों का हार गुंथा हुधा था । उस के पश्चात् "शान्ति देवी" उठ कर इस प्रकार करने लगी। कि-मेरी प्यारी बहनों वा माताश्रो !'मैं आप का अधिक समय न लूंगी मैं अपनी वक्तृता को शीघ्र पूण करूंगी-योंकि-श्रीमती "पद्मावती देवी ने जो कुछ स्त्री समाज का दिग्दर्शन फैशाया है वट' बड़े ही उत्तम शब्दों में और संक्षेप में वर्णन किया है जिस का सारांश ना ही है कि-हमें गृहस्था वास में रहते हुए प्रेम से जीवन निर्वाह करना चाहिये जैसे एक राजा ने अपनी मुशीला कुमारी से. पूछा। कि-हे पुत्री ! मैं तुम्हारा विवाह संस्कार करना चाहता हूं किन्तु मुझे तीन प्रकार के वर मिलते हैं जैसे फि-रूपवान् ! विद्वान् ! और धनवान् ! इन तीनों में में जिस पर तेरा विचार हो सो तू कह तव कन्या ने इस के उत्तर में कहा कि हे पिता जी मुझे तीनों की इच्छा नहीं है । तब पिता ने फिर कहा कि है पुत्री ! तेरी इच्छा किसपर है। उसने फिर प्रतिवन में