Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 10
________________ * प्राककथन प्रस्तुत कृति की रचना जन सामान्य को जैन धर्म दर्शन का बोध कराने के उद्देश्य से की गई है। इस पुस्तक में जैन धर्म दर्शन को निम्न छः खण्डों में विभाजित किया गया है। 1. जैन इतिहास 2. तत्त्व मीमांसा 3. आचार मीमांसा 4. कर्म मीमांसा 5. धार्मिक क्रियाओं से संबंधित सूत्र एवं उनके अर्थ और 6. धार्मिक महापुरुषों की जीवन कथाएँ। प्रत्येक अध्येता को जैन धर्म का समग्र रुप से अध्ययन हो इस हेतु यह परियोजना प्रारंभ की गई है। पूर्व में इस योजना के प्रथम वर्ष के निर्धारित पाठ्यक्रम के आधार पर विषयों का संकलन कर पुस्तक का प्रकाशन किया गया था। इसके इतिहास खण्ड में जहाँ प्रथम वर्ष में भगवान महवीर स्वामी का जीवनवृत्त दिया गया था, वहाँ इस वर्ष में भगवान पार्श्वनाथ, भगवान शांतीनाथ, भगवान अरिष्टनेमी की जीवनगाथाओं को अतिविस्तार से प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय तत्त्व मीमांसा खण्ड, प्रथम खण्ड में जहाँ जीव तत्त्व का विस्तार से विवेचन हुआ था वहाँ इस खण्ड में अजीव, पुण्य, पाप और आश्रव तत्त्व का विस्तार से विवेचन किया गया है। इसी प्रकार तीसरे आचार शास्त्र सम्बंधी खण्ड में जहाँ सप्त व्यसन और उनसे विमुक्ति के उपायों की चर्चा की गयी थी। वहाँ इस खण्ड में मार्गानुसारी गुणों का विवेचन किया गया है। इसी क्रम में कर्म मीमांसा में जहां पूर्व खण्ड में कर्म सिद्धांत के सामान्य मान्यताओं की चर्चा हुई थी वहाँ इस खण्ड में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और वेदनीय कर्म का विस्तार से विवेचन किया गया है। धार्मिक क्रियाओं के संबंध में पूर्व में नमस्कार महामंत्र और गुरुवंदन के सूत्र दिये गये थे वहाँ इस विभाग में सामायिक की साधना के कुछ सूत्र प्रस्तुत किये गये हैं और उनका अर्थ देकर उन्हें स्पष्ट समझाया गया है। जहाँ तक धार्मिक महापुरुषों की गाथाओं का प्रश्न है इस द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में निम्न महापुरुषों की कथाएँ दी गई है जैसे ढंढणमुनि, साध्वी पुष्पचूला, सम्राट संप्रति, द्रौपदी। इस प्रकार प्रस्तुत कृति में पूर्व प्रथम भाग में जैन धर्म दर्शन संबंधी जो जानकारियाँ थी, उनका अग्रिम विकास करते हुए नवीन विषयों को समझाया गया है। फिर भी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें जो विकासोन्मुख क्रम अपनाया गया है वह निश्चित ही जन सामान्य को जैन धर्म के क्षेत्र में अग्रिम जानकारी देने में रुचिकर भी बना रहेगा। प्रथम खण्ड का प्रकाशन सचित्र रुप से जिस प्रकार प्रस्तुत किया गया है उसी प्रकार यह खण्ड की जन साधारण के लिए एक आकर्षक बनेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। कृति प्रणयन में डॉ. निर्मला बरडिया जो श्रम और आदिनाथ ट्रस्ट के आयोजकों का जो सहयोग रहा है वह निश्चित ही सराहनीय है। आदिनाथ ट्रस्ट जैन विद्या के विकास के लिए जो कार्य कर रहा है, और उसमें जन सामान्य जो रुचि ले रहे हैं, वह निश्चिय ही अनुमोदनीय है। मैं इस पाठ्यक्रम की भूरि भूरि अनुमोदना करता हूँ डॉ. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 33000 2220000 4 1 40 : 11 . . Dalitattaliortime S eleconale ale oser only www.jainelibrary.org

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