Book Title: Jain Darshanna Vaigyanik Rahasyo
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Bharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
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જૈન આગમોમાં દિશાશાસ્ત્ર
जस्स जओ आइच्चो उदेइ सा तस्स होइ पुव्वदिसा । जतो अ अत्थमेइ उ अवरदिसा सा उ णायव्वा ॥ ४७ ॥
दाहिण पासंमि य दाहिण दिसा उत्तरा उ वामेणं ।
एया चत्तारि दिसा तावखिते उ अक्खाया ॥ ४८ ॥ ( आ. नि. गा. ४७, ४८)
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9.
जे मंदरस्स पुव्वेण मुणुस्सा दाहिणेण अवरेण ।
जे आवि उत्तरेणं सव्वेसिं उत्तरो मेरू ॥ ४९ ॥
सव्वेसिं उत्तरेणं मेरू, लवणो य होइ दाहिणाओ ।
पुवेणं तु उदेई अवरेणं अत्थमई सूरो ॥ ५० ॥ ( आ. नि. गा. ४९-५० )
जत्थ जो पण्णवओ कस्स वि साहइ दिसासु य णिमित्तं ।
तो मुहोय ठाई सा पुव्वा पच्छओ अवरा ॥ ५१ ॥ ( आ. नि. गा. ५१)
दाहिणपासंमि उ दाहिण दिसा उत्तरा उ वामेणं । एयासिमन्तरेणं अण्णा चतारि विदिसाओ ॥ ५२ ॥ एयासिं चेव अट्टहमंतरा अट्ठ हुंति अण्णाओ ॥
.............. ।। ५३ ॥ ( आ. नि. गा. ५२-५३ )
10. सोलस सरीर उस्सय बाहल्ला सव्वतिरिय दिसा ॥ ५३ ॥ 11. पुव्वा य पुव्वदक्खिण दक्खिण तह दक्खिणावरा चेव ॥
अवरा य अवरउत्तर उत्तर पुव्वुत्तरा चेव ॥ ५६ ॥ ( आ. नि. गा. ५६) 12. सामुत्थाणी कविला खेलिज्जा खलु तहेव अहिधम्मा ।
परियाधम्मा य तहा सावित्ती पण्णवित्तीय ॥ ५७ ॥ आ. नि. गा. ५७)
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13. सुयं मे आउ ! तेणं भगवया एवमक्खायं - इहमेगेसिं णो सण्णा भवइ ॥ तं जहा - पुरात्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि अहो वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि, एवमेगेसिं णो णायं भवति ।। सूत्र १-२ ॥ ( आचारांग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रथमाध्ययन, सूत्र १-२ )
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