Book Title: Jain Darshanna Vaigyanik Rahasyo
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Bharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha

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Page 354
________________ 327 नमस्कार स्वाध्याय/महामंत्र कल्प - (प्रका. संतिकरंस्तोत्र/कल्प - (महाप्रभाविक नवस्मरण, साहित्यविकास मंडल, अंधेरी, बम्बई) __ प्रका. साराभाई नवाब, अहमदाबाद) नमुत्थुणं कल्प संथारापोरिसीसूत्र नवतत्त्व प्रकरण संदेहदोलावली प्रकरण - श्री जिनदत्तसरिजी - न्यायसंग्रह - श्री हेमहंस गणि टीकाकार वाचनाचार्य प्रबोधचन्द्र गणि पच्चक्खाण भाष्य - आ. श्री देवेन्द्रसूरिजी सामवेद पन्नवणासूत्र - श्री सुधर्मास्वामीजी सिद्धचक्र महापूजन विधि पञ्चसंग्रह -- श्री चन्द्रमहर्षि सिद्रिस्थान पशास्तिकाय - (दिगम्बरीय ग्रन्थ) सूरिमंत्र कल्प समुच्चय (भाग 1-2) परिशिष्ट पर्व - श्री हेमचन्द्राचार्यजी - संपा. मुनि श्री जम्बूविजयजी पाक्षिकसूत्र (परखीसूत्र) (प्रका. साहित्य विकास मंडल, बम्बाई) प्रतिष्ठाकल्प - श्री पादलिप्तसूरिजी सूर्यप्रज्ञप्ति प्रवचनसारोद्धार - श्री नेमिचन्द्रसूरिजी सेन प्रश्न - श्री सुधर्मास्वामीजी पिंगलशास्त्र स्वागत - सित. १९९५ बृहत्संग्रहणी - श्री जिनभद्र गणि हाँकारकल्प - सं. पंडित धीरजलाल भक्तामरकल्प - (यंत्र - महापूजन) टोकरशी शाह, बम्बई भगवतीसूत्र (व्याख्याप्रज्ञप्ति/वियाहपण्णत्ति) - श्री Aion - Carl Gustav Jung A Text Book of Quantum Mechanics सुधर्मास्वामीजी, टीकाकार - P. M. Methews & K. Venkatesan, Tata Mc श्री अभयदेवसूरिजी Graw Hill Publishing House Company Ltd. भगवद् गीता New Delhi, 1988. Atomic Physics - J.B. Rajam मनुस्मृति Atomic Structure - E. U. Condon & Halis मंत्रविया (यंत्रविया) - श्री करणीदान सेठिया, Odabasi, Cambridge Uni. Press (U.K.) कलकत्ता Basic Mathematics - L. C. Jain महानिशीथसूत्र - श्री सुधर्मास्वामीजी Berliner Berichte-4, 11, 18, 25 Nov. 1915 Beyond Matter - Paramahansa Tewari लोकप्रकाश - उपा. श्री विनयविजयजी । Black Holes - Jean-Pierre Luminet, लोगस्स स्वाध्याय (कल्प) (प्रका. साहित्य विकास CambridgeUni. Press, U.K. ___ मंडल, अंधेरी, बम्बई) Black Holes, Quasars And The Universe. वर्धमानविया कल्प Harry L. Shipman, Hughton Mifflin Company, Boston. U.S.A. वसुदेव हिंडी - श्री संघदास गणि Bulletin of Theosophy Science Study Group, विचाररत्नाकर - उपा. श्री कीर्तिविजयजी India. विश्वप्रहेलिका - मुनि महेन्द्रकुमार द्वितीय' _ December, 1988, Vol. 26 No.6 Cosmology: Old and New G.R. Jain. (झवेरी प्रकाशन, बम्बई) Cosmology Truths of Ancient Indian वीतरागस्तोत्र - श्री हेमचंद्राचार्यजी Religions, Jainism and Hinduism Niranjan सकलार्हत्स्तोत्र - श्री हेमचन्द्राचार्यजी Vakharia, U.S.A Current Science March 1943 संगीत स्वरामृत Discover Nov. 80 & Sept. 81 American Science Magazine Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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