Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ४ ) घोसमां । ज्याने बां९ बार हजारजी ॥ प्रा. ॥७६ एह वीस वहरमान साश्वता। जघन पदे अवधारजी ॥ उत्कष्टा शत साठही। वौचरै महा विदेह मंझारजी ॥ मा० ॥८॥ प्रभु चौतीस पतिशय दीपती ॥ कोईवाणी गुण पतौसजी ॥ फिटक सिंहासन वैसको। आप जीवांना जगदीसजी ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ प्रभुलक्ष चौरासी पुरवां आयु परमाण विचारजी ॥ सहुनो पायु एकसो। नहीं कोडू फेर लिगारजी ॥ प्रा० ॥१०॥ पभु महा विदेहमें वस रहा। हुवसं भर्थ क्षेत्र मंझारजी ॥ पावन सक्त महारी नहीं। थारो नाम जपं जयकारजी ॥ प्रा० ११ ॥ जोरोवरको वौनती। थे मानो प्राणा धारजी । मुजमन भाव जाणो रह्या ॥ प्रभु जानतण अनुसारजी ॥ प्रा० १२ ॥ उगोंसे पैंसठ समैं । काई पोष शुक्ल पक्षसारजौ ॥ नवमी

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