Book Title: Jain Bhajan Mala Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ सरस वर जन बहु तारिया, तिमिर हरण जग भाण ॥ सु० ॥२॥ फटिक सिंहासण जिनजी फावता, तरु माशोख उदार। छव चामर भामंडल भलकतो, सुर दुन्दुभि झिणकार ॥ सु० ॥३॥ पुष्प वृष्टि वर सुर ध्वनि दोपतो, साहिब जग सिणगार। अनन्त ज्ञान दर्शन मुख बल घणं, ए हादस गुण श्रीकार ॥ सु० ॥ ४ ॥ बाणो अमी सम उपशम रस भरी, दुर्गति मूल कषाय । शिव सुखना भरि शब्दादिक कह्या, जग तारक जिनराय ॥ सु० ॥ ५॥ अन्तरजामी रे शरणै आप रे, हूँ पायो अवधार। जाप तुमारो रे निश दिन संभक, शरणागत सुखकार ॥ सु० ॥ ६ ॥ सम्बत् उगणोसै रे सुदि पक्ष भाद्रवे, वारस मंगलवार । सुमति जिनेश्वर तन मन स्यूं रव्या, पानन्द उपनो अपार ॥ सु० ॥॥ श्रो पद्म जिन स्तवन । (जिन्दवे री देशी छै सुण भगते भगवन्त के एदेशी) निर्लेप पद्म जिसा प्रभु. पद्म प्रभु पौछाण २ संयम लौधो तिण समै। पाया चोथो नाण, पद्म प्रभु नित्य समरिये ॥ १॥ ए मांकड़ी॥ ध्यान शुक्ल प्रभु ध्याय ने, पाया केवल सोय २। दीन दयाल तणो दिशा,Page Navigation
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