Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ हो। तो पिण राग व्यापै नहीं, जौल्यों मोह हरामी हो ॥५॥ जे जोधा जग में घगा, सिंघ साथै संग्रामौ हो। ते मन इन्द्रिय बश करौ, जोड़ी केवल पामो हो । सु० ॥ ६ ॥ उगणीसै पुनम भाद्रवी, प्रगामु शिरनामी हो। मन चिन्तित वस्तु मिलै, रटियां जिन स्वामी हो ॥ सु० ॥ ७॥ . . श्री शीतल जिन स्तवन । ( देवा आइ ओलंभड़ो सासुजी एदेशी) शीतल जिन शिवदायका ॥ साहेबजी ॥ शीतल चन्द समान हो ॥ निस्नेहो ॥ शीतल अमृत सारिखा ॥ साहेबजी ॥ तप्त मिटै तुम ध्यान हो ॥ निस्नेही ॥ सूरत थांरो मन बसौ साहेबजी ॥ १ ॥ बंद निंदे तो भणौ साहेबजी, राग द्वेष नहौं ताम हो ॥ निस्नेही । मोह . दावानल ते मेटियो । साहेवजी,॥ गुण निष्पन्न तुम नाम हो ॥ निस्नेही ॥ सू० ॥ २॥ नृत्य करै तुज भागले साहेबजौ, इन्द्राणी सुर नार हो । निस्नेही ।। राग भाव नहीं उपजे ॥ साहेवजी॥ ते अन्तर तप्त निवार हो । निस्नेही ।। सू० ॥३॥ क्रोध मान माया लोभ ए ॥ साहेबजी ॥ अग्नि तूं अधिकी आग हो ॥ निस्नेही । शुल्ल ध्यान रूप जन्नकरी ॥ साहेबजी।।

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