Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 35
________________ ( ३५ ) नोहिज कारण है, संसार नो कारण नथौ । ( सुयगडाङ्ग श्रु०.१ अ० ८गा० २३ ) (क) सम्यग्दृष्टि नो शुद्ध प्राक्रम है, ते सर्व निर्जरा नो कारणं पिणं संसार नो कारण नथी (पिंग अशुद्ध प्राक्रम तो संसार नोहि कारण, निर्जरा नो कारण नथी । ( सूयगडांङ्ग श्रु० १ ० ८गा० २४ ) १२ भगवत दौख्या लेतां इम को आज थौ सर्वथा प्रकारे मोने ( मुझ ने ) पाप करवो कल्पे नहीं । इम कही सामयिक चारित चादयो । ( अचाराङ्ग श्रु० २ अ० १५ ) १३ एक बेला रा कर्म बाकी रह्यां चनुतर विमाण में जाई उपजे । ( भगवती श० १४ उ० ७ ) 1 १४ प्रथम गुणस्थान नौ शुद्ध करणो है, ते आज्ञा मांय है | तेहनो न्याय | १५ प्रथम गुणस्थान ने निर्वद्य कर्म नो क्षयोपशम कह्यो । ( समवायांग समवाय १४ ) १६ अप्रमादौ साधु ने अणारम्भी कह्या । ( भगवती श० १३० १ )

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