Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 64
________________ ( ६४ ) आवाऽधिकारः । १ मञ्च आस्रव द्वार कया । CONTENTS AND MAINTAINED (ठाणांग ठा० ५ तथा समवायाङ्ग स० ५ ) ( क ) तथा मिथ्यादृष्टि ने अरूपी कही । ( भगवती श० १२ उ० ५ ) ' २ पञ्च चासव ने कृष्णण लेश्या ना लक्षण कया । ( उत्तराध्ययन अ० ३४ गा० २१-२२ ) ३ सम्यक् अने मिथ्यात्व ने जीव क्रिया कही । ( ठाणाँग ठा० २३०१ ) ४ दश प्रकार नो मिथ्यात्व को । ( ठाणांग ठाणे १० ) ५ अठारह पाप में वर्ते तेहिज जौव नें तेहिज जीवात्मा कही । ( भगवती श० १७ उ० २ ) ६ जीव अजीव परिणामी ग दश २ भेद कहा । ( ठाणांग ठा० १० ) ७ कषाय, जोग, दर्शन ए आत्मा कहौ । ( भगयती श० १२ उ० १० ) ८ उदय निप्पन्न रा तेतीस वोलां ने जीव कच्चा । ( अनुयोग द्वार ) ८ उत्थानादिक ने प्ररूपी कया । ( भगवती श० १२४०५ )

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