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४ साध जयणा तूं आहार करै तो पाप कर्म बंधै ' नहीं।
(दशवकालिक अ० ४ गा०८) ५ साधु ना आहार नौ वृत्ति असावद्य कही।
(दशकालिक अ०५ उ०१ गा०६२) ६ निर्दोष याहार ना लेवगाहार तथा देवणहार दोनों शुद्ध गति में जावे।
(दशवकालिक अ०५ उ०१ गा० १००) ७ छव स्थानके करी साधु आहार करे तो आजा उलंच नहीं।
(ठाणाङ्ग ठा०६)
निग्रन्छ निद्राऽधिकार ।
१ साधु रै यत्नाई करी सोवतां पाप बन्धे नहीं।
(दशवकालिक ३०४ गा०८) २ 'मुत्ते' नाम निद्रावन्त नो है।
(दशकालिक अ०४) ३ कांडक मुतो कांडूक जागतो खप्न देखें।
(भगवती २०१६ उ०६) ४ अभिग्रह धारी साधु तीजी पोरसी में निद्रा स्कै।
(उजराध्ययन १० २६ गा०१८)