Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 76
________________ २ उचार पासवगा परठी काष्टादिके कगै पूछां प्रायश्चित । । (निशीथ उ०४ बोल १३८) ३ उच्चार पासवस परठी ने शुचि न लेवै अथवा तठेई उच्चार ऊपर शुचि लेवै अथवा अति दूर ' जाई शुचि लेवै तो प्रायश्चित आवै। (निशीथ उ०४ चोल १३६ से १४१) ४ दिवस तथा रात्रि तथा विकाले पोता ना पावे तथा अनेरा साधु ने पाने उच्चार पासवण परठवी सूर्य रो ताप न पहुंचे तिहां न्हाखै तो दण्ड आवै। (निशोथ उ० ३ योल ८२) ५ धनी सार्थवाह विजय चोर साथै एकान्ते जाई उच्चार पासवण परठ्यो कयो। (माता अ०२) कविताऽधिकार १ तीर्थयार ना जेतला माधु हुई ते ४ दुविई' करी तेतला पन्ना करै। (नन्दी पञ्चमान वर्णन)

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