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{ ८४ ) मु लागै छै पाप कर्म रे॥ श्री ॥ ७॥ जिन भाष्या में जिनजी री आगन्या, औरां री भाष्या में और जाग रे। तिणस्यूं जीव सुधगत जावै नहीं, बले पाम लागे छै आण रे ॥ श्री ॥८॥ केवली भाषयो धर्म मंगलौक के, ओहिज उत्तम जाण रे । शरणो पण ल्यो इण धर्म रो, तिणमें श्रोजिन आज्ञा प्रमाण रे ॥ श्री ॥ ६ ॥ ठाम २ सूत्र मांहे देखल्यो, केवलौ भाषो ते धर्म रे। मौन साझे तिहां धर्म को नहीं, मौन साझै तिहां माप कर्म रे॥ श्री ॥ १० ॥ मौन सालगियो धर्म माठो घगो, भेषधास्यां परूप्यो जाण रे। खांच २ बुडै छै बापड़ा, से सूत्र रा लूट अजाण रे ॥ श्री ॥ ११॥ धर्म ने शुक्ल दोन ध्यान में, जिन आज्ञा दीधी बार बार रे । आतं रुद्र ध्यान माठा विहु, याने ध्यावै ते आजा बार रे ॥ श्री ॥ १२ ॥ तेजु पद्म शुक्ल लेश्या भली, त्यांने जिन भागन्या ने निर्जरा धर्म रे। तीन माठी लेश्या में आता नहीं, तिणस्यूं वन्धै छै पाप कर्म रे ॥श्री॥१३॥ च्यार मंगल च्चार उत्तम कद्या, च्यार शर्गा कह्या जिनराय रे । ए सगला छै जिन बागन्या मझे, प्राजा विन आशी वस्तु न काय रे ॥ श्री ॥ १४॥ भला प्रगाम में जिन आगन्या, माठा परिणामा आजा 'वार रे। भला पग्गिामा निर्जरा निपजे, माठा परिणामा पाम