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'. ॥ जिन अाज्ञा की ढाल ॥
॥दोहा॥.. श्री जिन धर्म जिन आज्ञा मझे, आजा वारै नहीं जिन धर्म । तिणस्युं पाप कर्म लागै नहौं, वले कटै
आगला कर्म ॥ १ ॥ कई खूढ मिथ्याती इम कहै, जिण आज्ञा बारै जिण धर्म। जिण आज्ञा मांहे कहै पाप छै, ते भुला अज्ञानी भर्म ॥ २ ॥ जिण आज्ञा बारै धर्म कहै, जिण आजा मांहे कहै पाप । ते किण हौं सूत्र में है नहौं, युहिं करै सूढ विलाप ॥ ३ ॥ कहै धर्म तिहां देवां आगन्या, पाप छै तिहां करां निषेध । मिश्र ठिकाणै मौन छ, एहं धर्म नो भेद ॥ ४॥ इसड़ी करै छै परूपणा, ते करै मिथ रो घाम । ते वूडा खोटो मत बांधने, श्रीजिन वचन उथाप ॥ ५ ॥ कई मिथ तो मानै नवि, मानै हिंसा में एकन्त धर्म। ते पण वडै छै वापडा, भारी करै छै कर्म ॥ ६ ॥ जिन धर्म तो जिण अाजा मझे, आजा वारै धर्म नहीं लिगार। तिगामें साख सूत्र गै दे कहूं, ते मुणग्यो विस्तार ॥ ७॥