Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 85
________________ द्वार रे । श्रौ ॥१५॥ मलां अध्यवसाय में जिन आगन्या; आज्ञा बारै माठा अध्यवसाय रे । भला अध्यवसायां तूं निर्जरा हुदै, माठा अध्यवसायां सूं पाप बन्धाय रे । श्री ॥१६॥ ध्यान लेण्या प्रणाम अध्यवसाय छै, च्यारूं भला में आज्ञा आण रे। च्यारूं माठा में जिन आज्ञा नहीं; यांरा गुणा रौ करजी पिछाण रे. ॥ श्री ॥ १७॥ . सर्व झूल गुण ने उत्तर गुण, देश सूल उत्तर गुण दोय रे । दोयां गुणा में जिननी री आगन्या, आगन्या बारै गुण नवि कोय रे ॥ श्री ॥ १८॥ अर्थ परम अर्थ जिन धर्म छै, उववाई सूयगडायंग मांय रे । तिणमें तो जिनजी रौ आगन्या, शेष अनर्थ में आज्ञा नवि ताय रे ॥ श्री॥ १६ ॥ सर्व ब्रत धर्म साधां तणो, देशवत श्रावक रो धर्म रे। या दोयां धर्म जिनजौ रौ आगन्या, प्राजा बारै तो वधसी कर्म रे ॥ श्री ॥ २० ॥ उजलो धर्म के जिनराज रो, ते तो श्रीजिन आज्ञा सहित रे। मुगत जावा अजोग असुध कह्यो, ते तो जिन आज्ञा स्यं विपरौतरे॥ श्री ॥ २१ ॥ आज्ञा लोप छांदै चाले आम है, ते ज्ञानादिका धन सं खाली थाय रे। प्राचारङ्ग अध्ययन दूसरे, जोवो, छट्ठा उद्देशा मांय रे ॥श्री ॥२२॥ माज्ञा सं रुकै ते धर्म मांहरो, एहवो चिन्तचे साधु मन मांय रे। भाजा विन करवो जिहांहिं रह्यो, रूड़ो

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