Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 80
________________ ' ८० ) अने गृहस्थ पोतारे अर्धे कीधो उपाश्रयो साधु भोगावै तो एक शुद्ध पक्ष रो सेवणहार को अने अल्प सावद्य क्रिया कही । ( आचाराङ्ग ध्रु० २ अ० २ उ०२ ) कपाटाइधिकारः । १ किमाड़ सहित स्थानक मन करी ने पिण बांगो नहीं । ( उत्तराध्ययन अ० ३५ ) २ घोड़ो उघाद्य पिण किमाड़ घणो उघाड्यो हुवै तेह ने पिण "मिच्छामि दुक्कडं " देवे । ( आवश्यक अ० ४ ) ३ जागां न मिले तो सूना घरने विषे रह्यो साधु किमाड़ जड़े उघाड़े नहीं । जड़े ( सुयगडग ध्रु० १ ० २३० २ गा० १३ ) ४ कण्टक वोदिया ते कांटा नी साखा करो वारणो ढक्यो हुवे तो धगी नी चाज्ञा मांगौ ने पूंजकर द्वार उघाड़यो । ( आवारा श्रु० २ अ० १३०५ ) ५. एहवी स्थानक माधु ने रहिवो नहीं ने उपाश्रय माहीं लघु नीति तथा वड़ो नीति परठा बो

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