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अने गृहस्थ पोतारे अर्धे कीधो उपाश्रयो साधु भोगावै तो एक शुद्ध पक्ष रो सेवणहार को अने अल्प सावद्य क्रिया कही ।
( आचाराङ्ग ध्रु० २ अ० २ उ०२ )
कपाटाइधिकारः ।
१ किमाड़ सहित स्थानक मन करी ने पिण बांगो
नहीं ।
( उत्तराध्ययन अ० ३५ )
२ घोड़ो उघाद्य पिण किमाड़ घणो उघाड्यो हुवै तेह ने पिण "मिच्छामि दुक्कडं " देवे ।
( आवश्यक अ० ४ )
३ जागां न मिले तो सूना घरने विषे रह्यो साधु किमाड़ जड़े उघाड़े नहीं । जड़े
( सुयगडग ध्रु० १ ० २३० २ गा० १३ ) ४ कण्टक वोदिया ते कांटा नी साखा करो वारणो ढक्यो हुवे तो धगी नी चाज्ञा मांगौ ने पूंजकर द्वार उघाड़यो ।
( आवारा श्रु० २ अ० १३०५ ) ५. एहवी स्थानक माधु ने रहिवो नहीं ने उपाश्रय माहीं लघु नीति तथा वड़ो नीति परठा बो