Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 79
________________ है शद्ध व्यवहार करी ने आधाकर्मी लियो निर्दोष जाणो ने तो पाप न लागे। (सूयगडांग श्रु०२ उ०५ गा० ८-६) (क) वीतराग जोयर चालै तेहथौ कुक्क टादिक ना अण्डादिक जौव हमौजे तेह ने पिगा पाप न लागै। पुण्य नी क्रिया लागै शुद्ध उपयोग माटे। (भगवती श० १८ २०८) (ख) साधु ई. वारी चालतां जीव हणोजै तो तेह ने पिण पाप न लागै। हणवारो कामी नहीं ते मारी। (भाचाराङ्ग श्रु० १ ० ४ ० ५) ७ अल्प (नहीं) वर्षा में भगवान विहार कौधो। (भगवती श० १५) ८ अल्प प्राणी बौज छै जिहां ते स्थानके साधु ने आहार करवो। (उत्तराध्ययन २०१ गा० ३५) ६ अल्प प्राण बोजादिक होवै तिण स्थान के शुद्ध करी आहार करवो। (आचाराङ्ग श्रु० २ ० १ उ०१) १. साधु रे अर्थे कियो उपाश्रयो भोगवै तो महा सावद्य क्रिया लागै। दोय पक्ष रो सेवगाहार कयो

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