Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ ७४) ४ एकलो रहे ति में आठ दोष कया । ( आचारांग ध्रु० १ १०५ ॐ० १ ) ५. सूत्र अने वय करौ अव्यक्त तेह ने एकाकि पो कला नहीं । तथा सूत्र ने वय करी व्यक्त है तिग ने पिग गुरु नी आज्ञा सूं एकाकि पयो red free आज्ञा बिना कल्प नहीं । ( अचाराङ्ग श्रु० १ भ० ५ उ० ४ ) ६ आठ गुणसहित ने एकल पड़िमा योग्य को श्रद्धा से सेंठो १ देव डिगायो डिगे नहीं २ सत्यवादी ३ मेधावी ( मर्यादावान ) ४ वहुस्सुये ( नत्रमा पूर्वनौ तीन वत्धुनो जागा ) ५ शक्तिवान ६ कलहकारी नहीं ७ धैर्यवन्त ८ उत्साह वीर्यवन्त । ( ठाणांग ठाणे० ८ ) ७ साधु ने श्रावक विहं ने धर्मना करणहार कह्या वलि साधु ने श्रावक ने 'सुव्वया' कया । ( एववाई प्रश्न २०-२२ ) ८ घना साधा में पिरा विकाले तथा गति में एकला ने दिशा न जायो । ( बृहत्कल्प उ० १ योल ४० ) ८ जे ज्ञानादिक ने अर्थे गुरुवादिक नी सेवा करें तो गच्छ मध्यवर्ती साधु निपुण सखाइयो वांछे । ( उत्तगध्ययन अ० ३२ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89