Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 70
________________ ( ७० ) निरवध कियाऽधिकार । ... . १ अठारह पाप सं निवा कल्याणकारी कर्म बंधै। ... (भगवती श० ७ उ० १०) '३ वन्दना करता नौच गोत्र खपावै । (उत्तराध्ययन अ० २६ बोल १०) '३ धर्मकथा सू शुभ कर्म बन्धै । (उत्तराध्ययन २० २६ बोल २३) ४ व्यावच्च कियां तीर्थंकर गोत्र बंधे। (उत्तराध्ययन अ० २६ बोल ४३) ५ तीन प्रकार शुभ दीर्घायु बंधै। (भगवती श०५०६) ६ दश प्रकार कल्याणकारी कर्म बंधै। (ठाणाङ्ग ठाणे १०) ७ अठारह पाप सेयां कर्कश वेदनीय कर्मे वंधै अने १८ पाप सूं निवा' अकर्कश वेदनीय कर्म बंधै । (भगवती श०७ उ०६) ८ वीस बोला करी तीर्घकर गोत्र वन्धे । (ज्ञाता अ०८) ६ प्राण, भूत, जोव, सत्व ने दुःख न दियां साता वेदनौ कर्म बन्धे । (भगवनी ०७१०१)

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