Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 67
________________ __ . आज्ञाऽधिकार १ वीतराग ना पग थको जौव मुवां ईर्यावहि क्रिया । कही। . . (भगवती श० १८ ३०८) २. सम्यक् मानता ने असम्यक् मिण सम्यक् हुई। (आचाराङ्ग श्रु० १ ० ५ उ०५) . (क) तीन उदक ना लेप लगावै तिगाने सबलो 1 दोष कह्यो। (दशाश्रुतस्कन्ध अ० २) ३ पांच मोटी नदी एक मास में बे वार अथवा तीन __वार उतरवो कल्ये नहौं । (वृहत्कल्प उ०४) ४ साधु ने नदी उतरवो कह्यो। (आचाराङ्ग श्रु० २ ० ३ ०२) ५ पाणी में डूबती थको साध्वो ने साधु बाहिर काटे । तो आज्ञा उलंधै नहीं। (वृहत्कल्प ३०६) ६ रात्रि में सिझायदिक ने अर्थे बाहिर जावणी कल्प। (बृहत्कल्प उ०१)

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