Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 38
________________ ३८ ) फोडव्या तेहना फल भोगवै । ( जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ) २८ मिथ्याती प्रकृति भद्रादि गुण थो वाणव्यन्तर देवता थाय । ( उववोई प्रश्नं ७ ) दानाऽधिकाः । असंयत ने दोधां पुन्य पाप को न्याय । २ आगान्द श्रावक इह विधि श्रभिग्रह लीधो-जे आज थको अन्य तीघ ने अन्य तीर्थी ना देव ने तथा अन्य तीथों ना ग्रह्या अरिहन्त ना चैत्य साधु भ्रष्ट घया । ए तीना प्रति वांटू' नहीं, नमस्कार करूं नहीं, शनादिक देऊ' नहीं, देवाज' नहीं, बिना बतलायां एक बार तथा घणी वार बोलाऊ' नहीं, तथा अशनादिक च्यार चाहार देऊ' नहीं । अनेरा पास थी दिराऊ नहीं । पिग एतलो आगार -- राजा ने आदेशे आगार १ घणा कुटुम्व ने समुवाय ना आदेश यागार ? कोई एक वलवन्त ने परवश पणे आगार ३ देवता ने परवश 1 आगार : कुटुम्ब में बडेरो ते गुरु कहिये •

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