Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 39
________________ तेहने आदेशे आगार ५: अटवी कान्तार ने विष भागार ६ ए छव छण्डौ आगार राख्या तो पोता ' रौं कचाई जागी ने राख्या। " (उपाशक दशांग अ० १) ३ तथा रूप जे असंयती ने फासू अफासू सूझतो - असूझतो अशनादिक दोधां एकान्त पाप निर्जरा, नथी। (भगवती श० ८ उ०६) ४ जे साधु कष्ट उपना एम विचारै। जे अरिहन्त भगवन्त निरोगी काया ना धणी, पोता ना कर्म , - खपावा ने उदेरी, ने तप करै। तो हू लोच ब्रह्म घर्यादिक अनेक रोगादिक नौ वेदना, किम न सहू। एतले मुझ-ने वेदना सम भावे. न सहतां, एकान्त पाप कर्म हुवै तो वेदना समभावे सहतां, एकान्त निर्जरा हुवै। (ठाणांगठाणे ४०३) ५ साधु नौ हेला निन्दा करतो अशनादि देवैः तिहां “पडिलाभित्ता" माठ कह्यो। (भगवती श० ५ उ०६) (क) तथा साधु ने वंदना नमस्कार करतो थको

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