Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ १० सावध व्यावच पर भिक्षुगणिराज कृत वार्तिका कहै है। ११ साधु नौ अर्श छेदै तिण वैद्य ने क्रिया कही। (भगवती श० १६ उ०३) १२ साधु अन्य तीर्थी तथा गृहस्थ पास अर्श छेदावै तथा कोई अनेरा साधुनी अर्श छेदतां अनुमोदै तो मासिक प्रायश्चित आवै। (निशीथ उ० १५ बोल ३१) १३ साधु रो गमड़ो टहस्थ छेदै तो साधु ने मने करी अनुमोदनी नहौं तथा वचन अने काया करी करावै नहीं। (आवारांग श्रु०२ अ० १३) विनयाऽधिकार। - - १ दोय प्रकार नो विनय सूल धर्म कह्यो साधु ना पञ्च महाव्रत ते साधु नो विनवलन्त धर्म अने श्रावक ना १२ व्रत तथा ११ पडिमा ते श्रावक नो यिनयलूल धर्म। (काना अ०५)

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89