Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 59
________________ ३ भगवान ना अङ्गोपाङ्ग ना हाड भक्ति' करी देवता ग्रहण करै। (जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति) ४ बीस बोल करी तीर्थङ्कर गौत्र बंधे। (शाता अ०८) , ५ साता दियां साता हुवै इम कहै ते आर्य मार्ग थी अलगो। समाधि भार्ग थौ न्यारो। जिन धर्म री हेलगा रो करणहार। अल्प सुखां रे अर्थे घणा सुखां रो हारगाहार । ए असल्य पक्ष मण छोडवे करी मोक्ष नहीं। लोह बाणिया नौ परै घगो झूरसौ। (सूयगडांग श्रु०१ अ० ३ ०४ गा०६-७) ६ पांच स्थानके करौ श्रमण निग्रन्थ ने महा निर्जरा हुवै। तिहां कुल गण संघ साधर्मों साधु ने काद्या।। . (टाणांग ठाणे ५ उ०१) ७ दश प्रकार नौ व्यावच साधुरैज कही। ( ठाणांग ठाणे १०) ८ पुनः दश प्रकार नी व्यावत्र साधुरैइज कही। (उचचाई) ६ साधु ना समुदाय ने गण संघ कह्यो। (भगवती श० ८ २०८)

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