Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 41
________________ मांस ना टवी घर २ ने विषै मार्जार नौ परै भ्रमण ... करणहार एहवा बे हजार कुपात्र ब्राह्मणां ने नित्य जिमा. ते जिमालनहार पुरुष ते ब्राह्मणां सहित बहु वेदना छै जेहने विषै एहवी महा असह्य वेदना युक्त नरक ने विषै जाई। अने दया रूप प्रधान धर्म नी निन्दाना करणहार हिंसादिक पञ्च आसव नौ प्रशंसाना करणहार एहबो जो एक मिण दुःशौलवन्त निर्ब ती ब्राह्मण जिमाई ते महा अन्धकारयुक्त नरक में जाई। तो जे एहवा घणा कुपात्र ब्राह्मणा ने जिमाड़े तेहनो स्यूँ कहियो। अने तमें कहो छो जे जिमाड़णहार देवता हुई तो हमें कहां छशं जे एहवा दातार ने असुरादिक अधम देवता नौ पिण प्राप्ति नहीं, तो. उत्तम वैमाणिक देवतानी गति नी अाशा एकान्त निराशा छ। (सूयगडाँग श्रु० २ अ० ६ गा० ४३, ४४, ४५) ११ भग्गु ने पुत्रां कह्यो, वेद भण्यां वाण शरण न हुवै तथा ब्राह्मण जिमायां तमतमा जाय । ( तमतमा ते अंधारा से अधारो) एहवी नर्क । (उत्तराध्ययन अ० १४ गा० १२) १२ श्रावक पिण विप्र जिमा. तेहनो न्याय चार प्रकार नर्कायु वांधे तिणेकरी अोलखायो।। (भगवती शतक ८ उ०६) K

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