Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ ( ४३ ) १८ नव विधि पुण्य कह्यो (सावध निवद्य अोलखणा) (ठाणाङ्ग ठाणे ६) १६ चार प्रकार ना मेह तिमहिन चार प्रकार ना पुरुष, कुपात्र ने कुक्षेत्र जिसा कह्या। (ठाणाङ्ग ठाणे ४ उ०४) २० शकडालपुत्र गोशाला प्रते कह्यो-हे गोशाला । तं मांहरा धर्माचार्य श्री महावीर ना गुणाकीर्तन कया। ते माटे देऊ छु तुमने पौट, फलग, सज्यादि। पिण धर्म तप ने अर्थे नहौं । (उपाशकदशा अ० ७) २१ मृगालोढा प्रति देखने गौतम, भगवान ने पूछ्यो हे भगवन्त ! दूण पूर्व भवे कांई कुपात्र दान दीधा ? कांई कुशौलादि सेव्या ? अने काई मांसादि भोगव्या ? तेहना फल ए नर्क समान दुःख भोगवै छै। तो जोवोनी कुपात्र दान ने चौड़े भारी कुकर्म कह्यो। (दुःखविपाक अ०१) २२ ब्राह्मणां ने पापकारी क्षेत्र कह्या । (उत्तराध्ययन अ० १२ गा०१४) २३ पन्द्रह कर्मदान ने व्यापार कह्या। (उपाशंकदशा अ० १)

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89