Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 46
________________ ( ४६ ) ३८ अनेरा सन्यासौ नो कल्प | ( उववाई प्रश्न १२ ) ४० वर्ण नाग नतुओ संग्राम में गयो तिहां एहवो अभिग्रह धायो–कल्यै मुझने जे पूर्वे हणै तेहने हणवो । जे न हौ तेहने न हणवो । ( भगवती श० ७ उ० ६ ) ४१ जे एकेक अन्यतीर्थों घको गृहस्थ श्रावक देश व्रते करौ प्रधान अने सर्व श्रावक यकौ साधु सर्व व्रते करो प्रधान । ४२ श्रावक नौ आत्मा अधिकरण कही है । श्रधिकरण ते छवकाय नो शस्त्र जाणवो । ( उत्तराध्ययन अ० ५ गा० २० ) ( भगवती श० ७ उ० १ ) (क) भरतजी को घोड़े ने ऋषि को उपमा दौधौ । तिमहिज श्रावक ने 'समगा भुया' को पि ते देशघकी उपमा नागवी । ( जम्बू द्वीप प्रशति ) ४३ च्चार व्यापार कह्या - मन, वचन, काया और उपकरण । ए च्चारुं व्यापार सन्नी पंचेन्द्रियरे कया । ए च्चारुं भृंडा व्यापार मि १६ दण्डक सन्नौ पंचेन्द्रिय कच्चा । धने ए च्या भला व्यापार तो संवतो मनुष्यांरेडन कच्चा । ( राणा राणं ४ ० १ )

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