Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 48
________________ तथा एहने मत हग एहवो मन में पिण विचार न करै। (आवारांग श्रु० २ अ० २ उ०१) ८ गृहस्थी मे, साधु ‘अग्नि प्रज्वाल तथा बुझाव' इम : न कहै। (आवाराँग श्रु० २ ० २ ३०१) ८ दशं प्रकार नौ बांछा कही। (ठाणांग ठाणे १०) १० असंयम जीवितव्य वांछणो वर्ची । (सूयगडाङ्ग श्रु० १ अ० १० गा० २४ ) ११ असंयम जीवणो मरणो वांछणो वौँ । (सूयगडाङ्ग श्रु० १ ० १३ गा० २३ ) १२ साधु असंयम जीवितव्य ने पूठ देई विचरै। (सूयगडांग श्रु०१ अ० १५ गा० १०) १३ असंयम जौवणो वांछणो वौँ । (सूयगडांग श्रु० १ ३०३ ३०४ गा० १५) १४ असंयम जौवगो वां तिगाने वाल अज्ञानी कह्यो। (सूयगडांग थु० १ ० ५ उ० १ गा० ३) १५ साधु भामगो आत्मा ने अमंयम जीवितव्य को अर्थी न करे। (न्यूयगडाँग ध्रु० १ ० १० गा०३) ११ असंयम जीवगो वांकगो वज्यों। (मयगडा०१० २.३०२ गा )

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