Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 45
________________ ३ न देव । पिण अनेरा पासे दीख्या लेवा नो उपदेश करै। (भगवती श० १ उ० ३१) ३२ अभिग्रहधारी अने परिहार विशुद्ध चारित्रियो कारण पयां अनेरा साधु ने अशनादि देव । (वृहत्कल्प उ० ४ बोल २७) ३३ गृहस्थादिक ने देवो साधु संसार भ्रमण नो हेतु जाणौ छोयो। (सूयगडांग श्रु० १ ० ६ गा० २३) ३४ गृहस्थी ने दान दियां अने देतां ने अनुमोद्यां चौमासी प्रायश्चित कह्यो। (निशीथ उ० १५ बोल ७४-७५) ३५ आणन्द ने संथारा में मिण गृहस्थ कह्यो। (उपासकदशा अ०१) ३६ गृहस्थोनी व्यावच कियां, करायां, बलि अनुमोद्यां ___ २८ मो अणाचार कह्यो। (दशवकालिक अ० ३ गा०६). ३७ इग्यारमी पडिमा में पिण प्रेम बंधण बूट्यो नयी। (दशा श्रुतस्कन्ध अ०६) ३८ पडिमाधारी रे कल्प ऊपर अम्बड़ सन्यासी ना कल्प नो न्याय। (उपवाई प्रश्न १४)

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