Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 42
________________ ( ४२ ) (क) बलि श्रावक पिण विप्र जिमा तिण ऊपर वालमर्ण थी अनंता नर्क ना भाव । तेहनो न्याय। (भगवती श०२ उ०१) १३ जे सावद्य दान प्रशंसै तेहने छःककाय नो वध नो वंधणहार कह्यो। अने वर्तमान काले निषेधे त्यांने अन्तराय नो पाडणहार कह्यो। ते माटे . साधु ने वर्तमान में मौन राखिवे कही। (सूयगडांग श्रु० १ अ० ११ गा० २०, २१) १४ दान देवै लेबै, इसो वर्तमान देखी गुण दूषण · कहणो नहीं। (लयगडाँग श्रु० २ ० ५ गा० ३३) १५ नन्दण मणिहारो दानशालादिक नो घणो प्रारम्भ करी मरौने पोतारी वावड़ी मेंज डेडको थयो। (माता अ०१३) १६ भगवान दश प्रकार ना दान प्ररुप्या। (सावद्य निर्वद्य भोलखणा) (ठाणाश टाणे १०) १७ दश प्रकार नो धर्म कयो (मायद्य निर्वद्य श्रोल खणा) अने दश प्रकार ना स्थविर कया लौकिक लोकोत्तर विडं जाणवा। (टाणाटाणे १०)

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