Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 37
________________ ( ३७ ) २१ तामली तापसनी अनित्य चिन्तवना । (भगवती श० ३ उ०१) २२ सोमल ऋषिनी शुद्ध चिन्तवना । (पुप्फयोपांग अ०३) २३ छद्मस्थ भगवान श्रीमहावीर नी अनित्य चिन्तवना। . .. (भगवती श० १५) २४ अनित्य चिन्तवना ने धर्म ध्यान को भेद कह्यो। (उववाई) २५ च्चार प्रकार देवायु बांधै-सराग संजम पालो १ श्रावक पणो पालो २ बाल तप करी ३ अकाम . निर्जरा करौ ४ तथा च्यार प्रकारे मनुष्यायु बांध-प्रकृति भद्रिक १ प्रहाति बिनीत २ दया परिणाम ३ अमत्सर भाव । (भगवती श० ८ उ०६) २६ गोशाले के शिष्यां के च्यार प्रकार नो तप कह्यो उग्र तप १ घोर तप २ रस परित्याग ३ नोझ्या इन्द्री वश कौधौ। (ठाणांगठाणे ४ उ०२) २७ अन्यदर्शणी पिण सत्य बघन मे आदयो। ' (प्रश्न व्याकरण संवरद्वार २) २८ वाण व्यन्तर ना देवता देवी बनखण्ड ने विषे वैसे, . • सूबै जाव क्रीड़ा करै। पूर्व भवे भला प्राकाम

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