Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 34
________________ ( ३४ ) ६ क्रियावादी सस्यग्दृष्टि (मनुष्य तिर्यंच) एक वैमा. णिक टाल और आऊषो न बांधै। साख सूत्र भगवती ३० उ० १) ७ मिथ्याती मास २ खमण तप करै तथा सुई नी अग्र पै आवै तेतलाज अन्न नो पारणो करै, पिण सम्यगदृष्टि ना चारित्र धर्म नौ सोलमो कला पिण नावै तेहनो न्याय। (उत्तराध्ययन अ० ६ गा० ४४) ८ मिथ्याती मास २ खमण तप करे, पिण माया थी । अनन्त संसार कले। (सूयगडांग श्रुतस्कन्ध १ अ० २ उ० १ गा० ६) द जीव अजीव जागे नहीं तेहना पच्चखाण दुपच्चखाग कन्या तेहनो न्याय । (भगवती श० ७ उ०२) १० भगवत दौना लियां पहलौ, २ वर्ष भामा (अधिका) घर में विरक्त पणे रह्या तथा काचो पाणी न भोगव्यो। (प्रथम आचारान अ० ( उ० १ गा० ११) ११ ज तत्त्व ना अजाण मिथ्यातो, त्यांरो अशुद्ध प्राक्रस के ते. संसार नो कारगा छ। मिण निर्मरा नो कारण नथी (पिण शुद्ध प्राक्रम तो निरा

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