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। २१ ) 'सुर नर तिरि तुम स्यं, किम हुवै दुखदायो। एकेन्द्री अनिल तो प्रतिकूल पणं, बाजे गमतो वायो रा॥प्र० ॥ आ० ॥ ५ ॥ राग द्वेष दुरदन्त ते दमिया, जीत्या विषय विकारो। दीन दयाल आयो तुज शरणे, तू गति मति दातारी रा॥ प्र० ॥ आ० ॥ ६ ॥ सम्बत् उगणीस
आसोज तीज कृष्ण, श्री मुनि सुब्रत गाया। लाडनू शहर मांहि खड़ी रौतें आनन्द अधिको माया रा ॥ प्र. । प्रा० ॥ ७॥
श्री नमि जिन स्तवन । (परम गुरू पूज्यजी मुज प्यारा रे एदेशी) नमि नाथ अनाथां रा नाथो रे, नित्य नमण करूं जोड़ी हाथो रे। कर्म काटण वीर विख्यातो, प्रभु नमिनाथजी मुझ प्यारा रे ॥१॥ प्रभु ध्यान सुधा रस ध्याया रे, पद केवल जोड़ी पाया रे। गुण उत्तम उत्तम पाया ॥ प्र० ॥२॥ प्रभु बागरी बाण, विशालो रे, खौर समुद्र थी अधिक रसालो रे । जग तारक दीन दयालो ॥ प्र० ॥ ३॥ थाप्या तीर्थ च्यार जिणन्दो रे, मिथ्या तिमिर हरण ने मुणन्दो रे । त्यांने सेवे सुर नर वृन्दो ॥ प्र० ॥ ४॥ सुर अनुत्तर विमाण ना सेवे रे, प्रश्न पूछशां उत्तर जिन देवे रे । अवधि जान करी जाण लेवे ॥प्र. ॥५॥ तिहां बैठा ते तुम ध्यान ध्यावे रे, तुम योग मुद्रा चित्त