Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 26
________________ अथ सीमंदर स्वामीजी रो स्तवन । ( राग खटमल री ) सौमन्दर स्वामी, तुम दरशण रो ह कामी हो । ॥ जिनजी दरशण रौ बलिहारी ॥ विनय करो मन मोड़ी, नित वान्द्र' वे कर जोड़ी हो || जि० ॥ १ ॥ महाविदेह मकारी, पुण्डरिकणी नगरी भारी हो । जि० ॥ श्रेयांस नृप सुखकारी, सतको नामे तमु नारी हो || नि० ||२|| उत्तम कुल उदारी, तठे आप लियो अवतारी हो । जि० ।। मुमना लह्या दश च्चारी, हिवड़ा हरख अमारी हो ॥ जि० ॥ ३ ॥ शुभ मुहर्त्त तुम जाया, जव सुरपति मिलने आया हो । जि० ॥ मोeva भारी कीधो, तुम नाम सोमंदर दौधो हो । जि० ० ॥ ४ ॥ दिन २ वधे जिम वागो, तृण ज्ञान सकल गुण खाणो हो । जि० ॥ परखा रुखमण नारी, बहु लौल करो संसारौ हो । जि० ॥ ५ ॥ मोह माया सव त्यागी, घर छोड़ हुवा वैरागी हो । जि० ॥ वातिया कर्म खपाया, नद केवल पदवी पाया हो ॥ जि० ॥ ६ ॥ मिल आया सुर नर नारी, देशना दोधी हितकारी हो ॥ जि० ॥ भीज गया भव प्राणी, चो संग

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