Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 28
________________ ( २८ ) गागर चित पणिहारी, वंश ऊपर नट विचारी हो॥ जि० ॥ १६ ॥ इर्या पथ ऋष ध्यानां, काजी मन जेम कुराना हो ॥ जि० ॥ इम धरूं ध्यान तुमारा, अन्य देव तज्या मैं सारा हो ॥ जि० ॥१७॥ पूरब लाख तियासी, जिन आप रह्या घर वासी हो ॥ जि० ॥ लाख पूरव रो दोचा, तुम देवो रुड़ी शिक्षा हो ॥ जि० ॥ १८ ॥ तास्था घणा नर नारी, मेल्या शिवगत सरकारी हो । जि०। चार कर्म करौ अन्त, लहस्यो शिव सुख अनन्त हो ॥ जि० ॥ १६ ॥ क्रोड़ कवि गुण गावे, पिण पार कदे नहीं पावे हो ॥ जि० ॥ वुद्ध मामा तवन जोड़ी, ए तवन कियो धर कोड़ी हो ।। जि० ॥ २० ॥ आपगा पर उपगार, फतेपुर शहर मझार हो || जि. ।। ऋष चन्द्रभाग गुण गाया, भले भवियण रे मन माया हो || वि० ॥२१॥ - - - - श्री काल गणिराज के गुणा की ढाल १ ली। उमराव र्थारी बोली प्यारी लागे मेरी जान ( पदेशी ) हो गगिगज धागे शासन अधिकी दोपे मोरा स्वाम। हो महाराज थारी वोली प्यारो लागे मोग स्वाम ॥ १॥ भरते भिनु आदि जिनन्द जिम आय लियो पवतार । भव जीवां ने वारवा काई कान्यो माग्ग

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