Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 21
________________ ''( १६ ब० ॥ । आनंद मोने वाला लागै छै जो अर महाराज ॥ १ ॥ उपसर्ग रूप अरि हरा, पाथा केवल पाज ॥ मे नयण न धामे निरखतांजी, इन्द्राग्नी सुर राज ॥ ३॥ वालं रे जिग्नेश्वर रूप अनूपम, तू सुगुर ताज । मो० ॥ ४॥ वाणी विशाल दयाल प भूख सषा जावे भाज ।। मो० ॥ ५ ॥ शर खाम रे जौ, अविचल सुख ने काज । मो० । उगहोसै आसू बदी एकम, आनन्द उपलो मो० ॥७॥ श्री मल्लि जिन स्तवन ।' . (जय गणेश ३ देवा तथा दीन दयाल जाण चरण एदे नौल वर्ण मल्लि जिनेश्वर, ध्यान निमल अल्प काल मांहि प्रभु, परम ज्ञान पायो। जिनेश्वर नाम; संमर तरण शरम आयो।।१ युप्यमाल जेम, सुगन्ध तन सुहायो । सुर वधु व भमर, अधिक हो लिपटायो । म ॥२॥ चक्र विविध विश्न; मिटत 'तुझ पसायो। सिवन गजेन्द्र जेम टूर जायो । म० ॥ ३॥ बागी निर्मल सुधर, रस सवेग छायो। नर सुरासु समझ, सुगत हो हरषायो।। म. ॥ ४ ॥ न नूहो कपाल, जनक ज्य: सुखदायो। वत्स 1.

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